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कवि की बातें निराली|
कल्पना के लोक में नित, वह मनाता है दिवाली|
जब सुनहरी कामना सी लक्ष्मी प्रिया बनकर आती|
दीप जलते हैं खुशी के मन में भी ज्योति जलाती||
कर समर्पित कर्म सारे, उसको ही वह कर्ता बनाती|
रोशनी जो देखते हो, कविता वह उससे ही पाती||
कर्म सारे हैं उसी के, वह बस बैठा रहता खाली|
कवि की बातें निराली|
कल्पना के लोक में नित, वह मनाता है दिवाली|
है अमोघ उसका तूणीर, रखता जो शब्दों के तीर|
एक के बाद एक चलाता बच न पाए कोई वीर||
है विनायक ही विधायक, रचत
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