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ईश्वर किसी एक धर्म , किसी एक पंथ या किसी एक मार्ग का गुलाम नहीं। अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने से ज्यादा अप्रासंगिक मान्यता कोई और हो हीं नहीं सकती । परम तत्व को किसी एक धर्म या पंथ में बाँधने की कोशिश करने वालों को ये ज्ञात होना चाहिए कि ईश्वर इतना छोटा नहीं है कि उसे किसी स्थान , मार्ग , पंथ , प्रतिमा या किताब में बांधा जा सके। वास्तविकता तो ये है कि ईश्वर इतना विराट है कि कोई किसी भी राह चले सारे के सारे मार्ग उसी की दिशा में अग्रसित होते हैं।
किस राह के हो अनुरागी ,
देहासक्त हो या कि त्यागी?
जीवन का क्या हेतु परंतु ,
चित्त में इसका भान रहे ,
किंचित कोई परिणाम रहे,
किंचित कोई परिणाम रहे।
है प्रयास में अणुता तो क्या,
ना राह में ऋजुता तो क्या?
प्रभु की अभिलाषा में किंतु ,
ना हो लघुता ध्यान रहे ,
किंचित कोई परिणाम रहे,
किंचित कोई परिणाम रहे।
कितनी प्रज
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