अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि शिव जी के जल्दी प्रसन्न होने की प्रवृति का भान होने पर वो उनको प्रसन्न करने को अग्रसर हुआ । परंतु प्रयास करने के लिए मात्र रात्रि भर का हीं समय बचा हुआ था। अब प्रश्न ये था कि इतने अल्प समय में शिवजी को प्रसन्न किया जाए भी तो कैसे?
वक्त नहीं था चिरकाल तक
टिककर एक प्रयास करूँ ,
शिलाधिस्त हो तृणालंबित
लक्ष्य सिद्ध उपवास करूँ।
===============
एक पाद का दृढ़ालंबन
ना कल्पों हो सकता था ,
नहीं सहस्त्रों साल शैल
वासी होना हो सकता था।
===============
ना सुयोग था ऐसा अर्जुन
जैसा मैं पुरुषार्थ रचाता,
भक्ति को हीं साध्य बनाके
मैं कोई निजस्वार्थ फलाता।
===============
अतिअल्प था काल शेष
किसी ज्ञानी को कैसे लाता?
मंत्रोच्चारित यज्ञ रचाकर
मन चाहा वर को पाता?
===============
इधर क्षितिज पे दिनकर दृष्टित
उधर शत्रु की बाहों में,
अस्त्र शस्त्र प्रचंड अति &n
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments