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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:27

ajayamitabh7ajayamitabh7 November 1, 2021
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शिवजी के समक्ष हताश अश्वत्थामा को उसके चित्त ने जब बल के स्थान पर स्वविवेक के प्रति जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित किया, तब अश्वत्थामा में नई ऊर्जा का संचार हुआ और उसने शिव जी समक्ष बल के स्थान पर अपनी बुद्धि के इस्तेमाल का निश्चय किया । प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का सताईसवाँ भाग।


एक प्रत्यक्षण महाकाल का और भयाकुल ये व्यवहार?

मेघ गहन तम घोर घनेरे चित्त में क्योंकर है स्वीकार ?

जीत हार आते जाते पर जीवन कब रुकता रहता है?

एक जीत भी क्षण को हीं हार कहाँ भी टिक रहता है?


जीवन पथ की राहों पर घनघोर तूफ़ां जब भी आते हैं,

गहन हताशा के अंधियारे मानस पट पर छा जाते हैं।

इतिवृत के मुख्य पृष्ठ पर वो अध्याय बना पाते हैं ,

कंटक राहों से होकर जो निज व्यवसाय चला पाते हैं।


अभी धरा पर घायल हो पर लक्ष्य प्रबल अनजान नहीं,

विजयअग्नि की शिखाशांत है पर तुम हो नाकाम नहीं।

दृष्टि के मात्र आवर्तन से सूक्ष्म विघ्न भी बढ़  जाती है,

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