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दुर्योधन बड़ी आशा के साथ अश्वत्थामा के हाथों से पांच कटे हुए सर को अपने हाथ लेता है और इस बात की पुष्टि के लिए कि कटे हुए वो पांच सरमुंड पांडवों के हीं है, उसे अपने हाथों से दबाता है। थोड़े हीं प्रयास के बाद जब वो पांचों सरमुंड दुर्योधन की हाथों में एक पपीते की तरह फुट पड़ते हैं तब दुर्योधन को अश्वत्थामा के द्वारा की गई गलती का एहसास होता है। दुर्योधन भले हीं पांडवों के प्रति नफरत की भावना से भरा हुआ था तथापि उनकी शारीरिक शक्ति से अनभिज्ञ नहीं था। उसे ये तो ज्ञात था हीं कि भीम आदि के सर इतने कोमल नहीं हो सकते जिसे इतनी आसानी से फोड़ दिया जाए। ये बात तो दुर्योधन को समझ में आ हीं गया था कि अश्वत्थामा के हाथों पांचों पांडव नहीं अपितु कोई अन्य हीं मृत्यु को प्राप्त हुए थे। प्रस्तुत है मेरी कविता "दुर्योधन कब मिट पाया का चालीसवां भाग।
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दुर्योधन कब मिट पाया:
भाग-40
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अति शक्ति संचय कर ,
दुर्योधन ने हाथ बढ़ाया,
कटे हुए नर मस्तक थे जो ,
उनको हाथ दबाया।
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शुष्क कोई पीपल के पत्तों
जैसे टूट पड़े थे वो,
पांडव के सर हो सकते ना
ऐसे फुट पड़े थे जो ।
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दुर्योधन के मन में क्षण को
जो थी थोड़ी आस जगी,
मरने मरने को हतभागी
था किंचित जो श्वांस फली।
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धुल धूसरित हुए थे सारे,
स्वप्न दृश ज्यो दृश्य जगे ,
शंका के अंधियारे बादल
आ आके थे फले फुले।
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माना भीम नहीं था ऐसा
मेरे मन को वो भाये ,
और नहीं खुद पे मैं उसके,
पड़ने देता था साए।
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माना उसकी मात्र प्रतीति
मन को मेरे जलाती थी,
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