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भगवान बताएं कैसे :भाग-1

ajayamitabh7ajayamitabh7 October 10, 2022
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कहते हैं कि ईश्वर ,जो कि त्रिगुणातित है, अपने मूलस्व रूप में आनंद हीं है, इसीलिए तो उसे सदचित्तानंद के नाम से भी जाना जाता है। इस परम तत्व की एक और विशेषता इसकी सर्वव्यापकता है यानि कि चर, अचर, गोचर , अगोचर, पशु, पंछी, पेड़, पौधे, नदी , पहाड़, मानव, स्त्री आदि ये सबमें व्याप्त है। यही परम तत्व इस अस्तित्व के अस्तित्व का कारण है और परम आनंद की अनुभूति केवल इसी से संभव है। परंतु देखने वाली बात ये है कि आदमी अपना जीवन कैसे व्यतित करता है? इस अस्तित्व में अस्तित्वमान क्षणिक सांसारिक वस्तुओं से आनंद की आकांक्षा लिए हुए निराशा के समंदर में गोते लगाता रहता है। अपनी अतृप्त वासनाओं से विकल हो आनंद रहित जीवन गुजारने वाले मानव को अपने सदचित्तानंद रूप का भान आखिर हो तो कैसे? प्रस्तुत है मेरी कविता "भगवान बताएं कैसे :भाग-1"?
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भगवान बताएं कैसे?
[भाग-1] 
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क्षुधा प्यास में रत मानव को ,
हम भगवान बताएं कैसे?
परम तत्व बसते सब नर में ,
ये पहचान कराएं कैसे?
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ईश प्रेम नीर गा

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