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सुबह होत खेतन को जावे,
शाम होत घर वापस आवे।
दिन भर खेतन में हल चलावे
फिर भी अपनी मेहनत का उचित मूल्य न पा पावे।
खाद बिया का दाम हवाई
दाम सुन किसान भाई का सिर जाई चकराई।
फिर भी किसान कुछ न बोलत भाई
रुपैया इंतज़ाम कर खाद बिया घर लई जाई।
सोंच फसल तैयार होई , तब कर्जा निपट जाई
जाई मारे कर्जा लईके , बऊनी हुई जाई ।
सर्दी , गर्मी , धूप और बरसात में कर मेहनत फसल ऊगावे
फसल काट खुश हुई जावे ।
जब फसल बेच घर वापस आवे
लईके कर्जा और कर मेहनत बहुत पछतावे।
अपने आप को कर्जा में डूबा पावे
किसान भाई अपनी मेहनत का उचित मूल्य न पा पावे ।
- अजय सिंह यादव
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