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सरमा के मौसम में कोहरे की चादर में,
छुपाते हैं कई पापी पाप अपने।
गवाह है ये दिसंबर की सर्दी ये कोहरे की चादर,
सरहद पर फ़र्ज़ निभाते हैं कई भाई अपने।
तभीतो दिसंबर की सर्दी में युगल गाते हैं गीत
नज़्में।
कुर्बानी को उनकी यूँ ज़ाया न होने देना,
साथ देना उनका सदा चाहे गवाने पड़े हमें भी अपने।
देश की खातिर छोड़ देते हैं परिवार को वो,
उस वीर परिवार को कभी अकेला ना होने देना।
चले पता उस दुश्मन को भी,
यहां देश की खातिर वीर चढ़ाते है शीश अपने।
अजय किशोर
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