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भाव छंद अलंकारों में
स्मरण तुम्हारा करता हुं
आधे अधूरे रचनाओं संग
वंदन पर पूरी करता हुं।
आभास आलौकिक है तुमसे
हां पूर्ण समर्पण करता हुं
जो स्वर के तार उठे तुमसे
तुम तक ही तर्पण करता हुं ।
प्रेरक तुमही और पूरक भी
मेरे होने का धोतक भी
ये अर्ध सत्य समझता हुं
वंदन पर पूरी करता हुं ।
अजय झा **चन्द्रम्**
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