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गर साँसों की जुबानी
कह पता मैं कहानी
भर के उसाँसे छुप कर
छोड़ जाता मैं कहानी।
फिर वक्त की कड़ी से
मरहम न मांगता मैं
करने को सब बयां
हमदम न ढूढ़ता मैं।
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गर साँसों की जुबानी
कह पता मैं कहानी
भर के उसाँसे छुप कर
छोड़ जाता मैं कहानी।
फिर वक्त की कड़ी से
मरहम न मांगता मैं
करने को सब बयां
हमदम न ढूढ़ता मैं।
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