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होलिका की आग में
अहंकार ही तो जलता है
फिर बैर छुपा अंतर में
मानव क्यों खुद को छलता है।
रंग भरे जब ईश्वर ने
तब मूल था खुशहाली आए
पर मानव की करतूतों से
भेद बढ़े, बदहाली छाए।
जोड़ दिया मूढों ने
रंगो को भी धर्मो से
और भूल गए क्यों प्रकृति ने
सतरंगी इन्द्र धनुष बनाए।
श्वेत अश्वेत कभी करते है
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