नियति और कर्म's image
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कह्ते हैं पौरुष में बल है
जो मानवता का सम्बल है
पर नियति के आगे तो 
क्या बल है, क्या सम्बल है।

इक कठपुतलि हूं बन बैठा,
नियति के आगे झुका हुआ
मन है भिंचा, बुद्धि ऐंठा
लाचार और बेबस रुका हुआ।

हे देव! नहीं भूला मैं कभी
कि कुछ रहा नहीं बस में कभी
किस बात का थोंथा दंभ

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