
Share0 Bookmarks 516 Reads2 Likes
कह्ते हैं पौरुष में बल है
जो मानवता का सम्बल है
पर नियति के आगे तो
क्या बल है, क्या सम्बल है।
इक कठपुतलि हूं बन बैठा,
नियति के आगे झुका हुआ
मन है भिंचा, बुद्धि ऐंठा
लाचार और बेबस रुका हुआ।
हे देव! नहीं भूला मैं कभी
कि कुछ रहा नहीं बस में कभी
किस बात का थोंथा दंभ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments