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जग में जीवन का सृजन करे
प्रकृति बन पोषण भरण करे
जो भावों का हर भार धरे
आओ उसका आभार करें।
कभी माता तो कभी पुत्री बन
ममता वात्सल्य प्रवाह करे
कभी भगिनी, भार्या, प्रेयसी बन
प्रेम त्याग का निर्वाह करे।
रूढियों को वह तोड़ चली
डर को पीछे है छोड़ बढी
अपने स्वत्त्व और इच्छा को
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