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अधर मे है कहीं अटकी
बीते दिनों कि कुछ बातें
जहां अब भी है मुश्किल
क्या सही क्या गलत समझना।
समय से छुप छुपाकर
चाहता हूँ हर बार
दो पल को ही सही
पर तुझे फिर से पुकारूं।
जनता हूँ ये मुमकिन नहीं
है वक़्त के विपरीत ये
पर आज भी अधूरा है
मेरा मैं तुम बिन कहीं।
है लोग कहते बेहिचक
कोई किसी के लिए रुकता नहीं
मैं चल पड़ा, मन रुक गया
वहीं खड़ा, जिद्दी, बेझिझक।
आज भी उतना है छोटा
और है उतना ही चंचल
क्योंकि उसके लिए तो
कल है तुम्हारा होना यहाँ।
अजय झा **चन्द्रम्**
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