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अधर मे है कहीं अटकी
बीते दिनों कि कुछ बातें
जहां अब भी है मुश्किल
क्या सही क्या गलत समझना।
समय से छुप छुपाकर
चाहता हूँ हर बार
दो पल को ही सही
पर तुझे फिर से पुकारूं।
जनता हूँ ये मुमकिन नहीं
है वक़्त के विपरीत ये
पर आज भी अधूरा है
मेरा मैं तुम ब
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