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न जाने किस घड़ी से
किसके लिए खड़ा हूं
कैसी है जिद ये मेरी
जिसके लिए अड़ा हूं।
न भुत जानुं उसका
न भविष्य देखता हूँ
वर्तमान की घड़ी मे
उसकी राह देखता हूँ।
पास आने कि आस मे
मन व्याकुल यहां जरा हैं
उसे पाने की आस मे
जरा सहमा और डरा है।
ये वक्त् जाने कैसा
जो पार नही होता
धैर्य टूटता है
इन्तज़ार नही होता।
अजय झा **चन्द्रम्**
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