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बड़े दिनों के बाद सही, खुश हूं कि ये बात छिड़ी
बन्दूक-बमों के दौड़ मे, मेरी भी जरुरत आन पड़ी।
लोहार लहु और म्यानों से, मेरा अभिन्न सा नाता है
धारण करे मुझे जो कोई, मेरा समर्पण पाता है।
अस्त्रों कि परिभाषा में, रक्षण-भक्षण है मुल रहा
और समर के मध्य मैं,
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