
चहूं ओर चर्चा जोर है
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का शोर है
मेरे उद्वेलित मन ने पूछा
क्या ये भावों का चोर है
थोड़ा असहज हुआ मैं
पर सोचना तो पड़ता है
मन के इस असमंजस को
उत्तर देना तो बनता हैं
किया निर्माण हमने इसका
जटिल प्रश्न सुलझाने को
यन्त्र- बुद्धि के संयोग से
सरल मार्ग तलाशने को
सफल हम हुए तनिक
और विकास अभी जारी है
पर ध्यान रहे सदैव सखे
इसका चरित्र दो धारी है
विकास और विनाश के मध्य
कृत्रिम बुद्धि के अधिकारी हैं
देखना है सूक्ष्मता से हमें
ये चलन कितना हितकारी है
स्वीकार्य है विस्तार इसका
अद्भुत इसकी कारर्गुजारी है
पर कल्पना को लाँघ सके
नहीं इसमें ये होसियारी है
जागृत रहना आवश्यक है
पर डरने कि कोई बात नहीं
तुम्हारे सवाल स्वाभाविक हैं
पर हम इससे अज्ञात नहीं
प्रकृति से सृजित मूल का
हमें भान रखना होगा
कृत्रिमता को सिमित कर
सवेंदना संग रहना होगा
अजय झा *चन्द्रम् *
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