Share0 Bookmarks 32048 Reads4 Likes
इस तेज दौड़ में
बेतुके से होड़ में
बेबाक दौड़ते हैं
पल भर न सोचते हैं।
पैदा हुए थे इन्सान
पर् इन्सान नही रहे
खोखली सी चाहतों में
भेड़ बकरी बन गये।
रिश्तों को कर किनारे
बस लाभ ढूंढते है
दुसरो कि टीस मे
अपनी जीत देखते हैं।
कबसे कहे न जाने
भ्रस्टाचार गरीबी सहते
पर उफ्फ
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments