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वो इतिहास का परिहास करे
जो वर्तमान देख न पाते है।
अपने अहम मे मद्मत्त हुए
बस अन्यों को मूर्ख बताते हैं।
वो उत्पात मचाने को
हर घड़ी यु आतुर रह्ते हैं
बन जाते स्वयं ही धर्म दुत
देवत्व को लांछित करते हैं।
मुल समझते नही स्वयं का
बस थोथि बातें करते है
है अन्तर्मन हुआ मलिन पर
पर चोले मे ढकते फिरते हैं।
है काल चक्र चलायमान
उसे लेखा जोखा रखने दो
ना करो विधाता को खंडित
ईश्वर को एकाकी रहने दो।
अजय झा **चन्द्रम्**
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