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हूँ नत्मस्तक तुम्हारे आगे
आज ये सब जानकर
भान मुझको हुआ खुद का
ये दिव्य रूप देखकर।
मौसमों के बदलते रंग तुमपे फब् रहे
बादलों से दुर् फिर पवन चुप कब् रहे।
ऐसा लगता है कि मानो
सब कुछ सिमटा है यहाँ
पंचतत्व कि गोद मे
मैं भी लिपटा हूँ यहाँ।
पंत जी के प्रकृति प्रेम का
बोध मुझको हो गया
इस मनोहर सत्य से
मेरा परिचय हो गया।
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