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दीदारे दर्द का किस्सा
बड़ा बेचैन करता है
गुजरते हर एक् लम्हे मे
तेरा ही जिक्र रहता है।
वो कहते हैं कि बताओ
अब दर्द कैसा है
कुछ् कम हुआ है कि
पहले के हि जैसा है।
दवा तो दे नही सकते
अजी ये मर्ज गहरा है
के कतरे कतरे मे ठहरा
सिर्फ् दर्द का पहरा है।
कोइ पुछे वजह् मुझसे
तो सब याद आता है
जख्मों के किनारे से
परत फिर उतर ही जाता है।
दुआ है दर्द का दामन
युहिं आबद होता रहे
मुझ जैसे स्वर्थियों को
ये सौगत मिलता रहे।
अब जो टीस है अन्दर्
वो शायद कम नही होगी
मर जाये तो आखिर मे
जलके खत्म हि होगी।
अजय झा **चन्द्रम्**
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