
Share0 Bookmarks 109 Reads1 Likes
बरसों बाद बरसी है
मेरी बेकारी पर बरस
बरस यूं बेफिक्र हो
कि बेचैनी बेतार हो जाए।
बरसों बाद बरसी है
बदहवास हो बरस
बरस आज बेदर्द बन
मेरी बदसलूकी पर।
मेरी बेचारगी पर बरस
बरस फिर बेहिसाब होकर
कि बहल जाऊं मैं
बहक कर भी ।
बरसों बाद बरसी है
बेपीर बरस
बरस यूं कि बूंदों में बिधे
मेरी बोली ।
मेरी बौखलाहट पर बरस
बरस फिर बेरहम होकर
कि बेहतर हो जाऊं मैं
बिखर कर भी ।
अजय झा **चन्द्रम्**
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments