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कहा करते हैं अक्सर लोग
जीने का बहाना हो तो अच्छा
फिर हम समझ नहीं पाते
ये फ़साना झूठा है या सच्चा
कुछ वक्त, बहाने हर पल
बड़े सुहाने से लगते हैं
पर दूजों का बहाना हो
तो जी को जलाने लगते है
फिर तो अमावस की रात
तन्हाई और अंधेरों से बात
यही बस मन को भाती हैं
बाकी तो बस टीस दे जाती है
जिन्हें पड़ता है फर्क
उन्हें वो किस्सा मुबारक हो
खुशकिस्मती जिंदा रहे उनकी
उन्हें वो हिस्सा मुबारक हो ।
अजय झा *चन्द्रम् *
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