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हम मजदूर हैं.. मज़बूर नहीं
हमारी मंजिल हमारी कोशिशों से दूर नही
शहरों ने मुँह मोड़ लिया तो क्या
गाँव मे ये दस्तूर नहीं..
आज ख़ामोश होकर..
सबसे मायूस हो जा रहें है हम..
जा रहे है क्योंकी हमारी उम्मीदें टूटी हैं
जा रहें है क्योंकी तुम्हारी हमदर्दी झूठी है
तुम्हारे घरों में लगा हमारा पसीना है
तुम्हारे ख्वाबों को मिला हमारे हौसलों का नागिना है तुम्हारी उम्मीदों के हाथ हैं हम
हर मुश्किल है आसान जो साथ है हम
पर तुम हमे कुछ दे न पाये..
हम चले गए और तुम रोक न पाये..
जा रहे हैं क्योंकि खुदगर्ज़ी तुम्हारी देख न सकेंगे तुम्हारे एहसानों का बोझ सह न सकेंगे
तु
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