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कोई अंकुश है मन पर 
और कुछ विवशताएं
अंदर ही अंदर सहमा सा, 
भयभीत है स्वयं से
स्याह रात में निहारता 
चाँद तारों की दौड़ को
ह्रदय भाग जाना चाहता है 
दूर मोह के पाश से
जाग्रत होती है सुषुप्त चेतना 
अवचेतन मन में 
टूटता है स्वप्न 
प्राप्त होता है यथार्थ !
~अहर्निश




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