बहता पानी निर्मला's image
Article1 min read

बहता पानी निर्मला

RaghavRaghav December 4, 2021
Share0 Bookmarks 194592 Reads0 Likes

बहता पानी निर्मला


थम जाने पर जैसे जल में काई जम जाती है वैसे ही ऐसा मन जो बदलाव और प्रगति से विमुख हो गया है, मलिन हो जाता है। आसक्ति, मोह और सुरक्षा की चाह के कारण मन बदलने से घबराता है। परंतु उसे यह नहीं पता होता कि यह सुरक्षा आत्मघातक है। 


हम दूसरों पर इतना आश्रित रहते हैं, इतना उन पर भरोसा रखते हैं। इतना अगर हम स्वयं के करीब हों तो हमारे बंधन कट जाएँगे। 


पराधीन सपन

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts