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तुम भी तो बसंत जैसी हो,
जिसके होने मात्र से
फूलों में जान आ जाती है,
बसंत कभी ये नही कहता
कि मैं तुम्हारे लिए आया हूं,
लेकिन आकाश में छाने वाली
लालिमा से लेकर,
अपने यौवन की लालसा लिए
छोटा पौधा भी उसको गले लगाने को
अपनी बाहें फैला देता है।
फूलों पर बैठे भवरों को नए साथी
और तितलियों को नए घर
सिर्फ उसके होने के एहसास से मिल जाते हैं,
और बसंत भी देता है अपना प्यार
बिना कोई भेद किए
बिना कोई आस किए,
और निकल जाता है
अपनी बाहों में सारी दुनिया की
उदासी
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