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मैं समंदर की तरह इंतजार करता रहा,
कि तुम नदी की तरह आओगी,
अपने टेढ़े मेढे रास्तों से होकर,
अपने सपनों को पूरा करते हुए,
सबको खुशियां बांटते हुए,
सबकी जिंदगी आसान बनाते हुए,
और जब सबके आंसू पोछते हुए
तुम थक जाओगी, तो फिर आओगी तुम
और समा जाओगी मुझमें,
फिर मैं धोऊंगा तुम्हारे पांव,
कि तुम्हारी थकान मिटा सकूं,
पोछूंगा तुम्हारे आंसू जो कोई देख न पाया,
लगाऊंगा गले से कि कुछ सुकून मिले तुम्हे...
पर तुम कभी पूरी आई ही नहीं,
तुम रास्तों पर ठहर सी गई,
कभी सपनों के नाम पर तो
कभी अपनों के नाम पर,
लोगों ने रोक लिया तुमको जैसे
नदी को रोका गया हो बांध बनाकर,
और फिर उतना ही छोड़ा तुमको,
जितने से मतलब नहीं था,
और तुम उतनी ही आई मेरे पास,
जबकि मुझे मतलब था तुम्हारी हर सांस से,
जाने तुम कब आओगी पूरी मिठास लिए,
मैं समंदर की तरह इंतजार करता रहा।।
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