Share0 Bookmarks 44932 Reads0 Likes
फ़िक्र के आईने में जब भी मुझे देखता हूं
ख़ुद को दरिया से फ़क़त बूंद लिए देखता हूं
बे ख़बर, रोड़ पे इन भागते बच्चों को मैं
कितनी हसरत से थकन ओढ़े हुए देखता हूं
कितनी उम्मीद से आया था तुम्हारे दर पर
तुम ने बस यूं ही मुझे कह दिया है देखता हूं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments