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लिखनी है एक कहानी अब फिरसे,
कभी जमीन बूंद पानी को ताके ना तरसे,
फिर आके मिलें दो दरिया किनारे,
इक बेहतर समंदर फूलों की क्यारी,
तू जैसे जमीं पे उतारी गई हो,
गजब हो इतनी तुम बेहतर संवारी गई हो,
आंखे तिलिस्मी साहेब फर्क बताऊं,
होठ गुलाब गाल जामुन भई हो,
तुम भी सुरमा जब काला लगाती हो जानम,
कितनी सुनामी बुलाती हो जानम,
पर रहमत कि हर सब पे पर्दा किया,
पर आंखे कयामत दिखाती हो जानम,
तेरे किस्से थे थोड़े पुराने कई,
मेरी जां तुमने कभी को सुनाया नहीं,
गैरो ने हमको सुनाया सभी,
पर क्या ऐतराज भी हमने जताया कभी,
तुम आई थी कहानी में तितली सी बनके,
तेरे बदन की खुसबू से मेरे हर दर महके,
तूने ही बारी हमेशा पुकारा मुझे,
मुझे बदतर से बेहतर संवारा मुझे,
मेरे हाथों को हाथों में थामा था जब,
मेरी धड़कन को शीशे में उतार
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