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सुनो , जा ही रहे हो तो सुनते हुए जाओ ना । मैं हर रोज़ ऐसी ही रहूँ ये तो प्रकृति के नियम केविरूद्ध है , हाँ मगर मैं हर रोज़ तुम्हें ऐसे ही प्यार करूँ तो इसमें मेरी वास्तविकता होगी , मेरी प्रकृतिऔर मेरे दिल के नियम होंगे इसमें बाज़ारू , समसामयिक मिलावटें नहीं होंगी इसमें सिर्फ़ मेरा भावहोगा निःस्वार्थ भाव तुम्हें प्रेम देने का ।
मुझे तुमसे प्रेम करना होगा तो मैं ऐसे ही करूँगी जो मेरा वास्तविक स्वरूप होगा ,
यदि मुझे अपना स्वरूप बदलना पड़ जाए प्रकृति की सबसे पवित्र रचना को प्यार करने के लिए तोफ़िर वो अपराध
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