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१. स्त्रियों के जितने
पर्यायवाची
तुम व्याकरण की
किताब में ढूँढते रहे;
एक पर्याय
तुम्हारे घर के कोने में
अश्रुत क्रन्दन और
व्यथित महत्वाकांक्षाओं
के बीच
पड़ा रहा।
२. इस शहर की
परतों से
डर लगता है मुझे;
बाहरी परत पर
रौनक़ का शामियाना
लगा है;
अंदर की गलियों में
मुफ़लिसी की क़बायें हैं
फुटपाथ पर चलता आदमी
पूछता है मुझसे-
“कहाँ से आए हो बाबू!”
“जाना किधर है?"
३. मैं छोटे शहर का आदमी हूँ
अपना घर छोड़कर
जून कमाने
तुम्हारे शहर
तब तक आता रह
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