
“बेटी” कहने को तो दो अक्षर का एक शब्द है लेकिन देखा जाये तो एक पूरी दुनिया।
आज ये बात मैं इसलिये बोल रहा हूँ क्योंकि आज की दुनिया कहने को तो आधुनिक है लेकिन बेटी के जन्म के वक्त पिछड़ी सोच की हो जाती है। आज मैं एक बुज़ुर्ग व्यक्ति के पास बैठा था(एक अस्पताल में) जहाँ वो इंतज़ार कर रहे थे की उनकी बहु को ‘बेटा’ हो या ‘बेटी’। कुछ समय बाद खबर आयी कि ‘बेटी’ हुई है। तब उन्होंने कहा की “ईश्वर की अनुकम्पा है की बेटी हुई है हमें बेटी ही चाहिये थी, बेटे और बेटी में क्या अंतर है और वैसे भी आजकल बेटे माता-पिता को उतना सम्मान नहीं देते जितना बेटी ससुराल जाने के बाद भी देती है।”
यह सब कुछ सुनकर मुझे अति हर्ष हुआ, इसलिए की आज बेटी के विषय में समाज के विचार सकारात्मक होते जा रहे है।
बेटी होने वाली माँ है और माँ ईश्वर समान है इसलिए बेटी का सम्मान ईश्वर का सम्मान है।
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