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यहां आकर जो खुशी मिलती है
वो खुशी कहीं नही मिलती
एक अपनापन वो भी
मासूमियत से भरा हुआ
कुछ अनोखापन वो भी
मस्ती से भरा हुआ
एक लिहाज़ वो भी अपने
दायरों में घिरा हुआ
कुछ अनकही आंखें
वो भी घूरती नही
निहारती हुई मुझको
कुछ मुस्कुराहट से लबरेज़ होंठ
वो भी निश्च्छल प्रकृति से निर्मल
वो फूलों की भांति खिले-खिले चेहरे
जो सम्बल देते है
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