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जहां श्रंगार है
वहीं से उपजेगा
वियोग भी
पीड़ा भी
हास्य भी
वीभत्स भी
करुणा भी
और रसों का
रसास्वादन भी
इस श्रंगारित सहयोग के
संयोग से
सब कुछ परिभाषित हो रहा है
कुछ मिलन पतझर है
कुछ बहार सा खो रहा
अभी यह जो
संतृप्ति है
असल मे यही
भटकाव है
काश!इस सादा जीवन में
रोचकता महज़
बहाव होता
शांत शीतल बहाव
जो बह जाता उधर
जिधर का बहाव होता......
आचार्य अमित
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