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“शब्दो में जीवन है”
मैंने जाने से पहले
देखना चाहा था
एक आख़िरी बार..
तुम्हारे चक्षुओं में..
जहाँ ठहरी हुई है
कोई बेबस सरिता..
हथेलियों से पीछे
धकेल उस जल
की उद्विग्नता को रोकती
तुम...
पर पीछे मुड़ने से
शायद टूट जाता
ये बांध और साथ ही
मेरे संयम का वो पुल
जिसे बनाने को स्वयं
पाषाण हुआ मैं..
सुनो.....प्रेम में
विनाशकारी नहीं होना मुझे!
जानती हो...
मैंने जाने से पहले
एक बार फिर दोहरानी
चाही थी वही
तुम्हारे
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