
Share0 Bookmarks 131 Reads1 Likes
सुबह की सुनहरी धूप से संग साँझ तलक वो खिलती है,
कोई जब जैसे जितना चाहे, उसको उतना ही मिलती है।
शब के आते ही आकाश नदी में जब चाँद गोते लगाता है,
आईने की अदालत में ख़ुद को खड़ी कटघरे में रखती है।
सच की कसौटी पे परख़, आप सुकून उसे आ जाता है,
हो जाने दें सब की आवाज़ें ऊँची, खामोशी से सुनती है।
चाँदी से चमकते चेह
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments