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तुम इतने नासमझ तो नहीं,
कि इतने अरसे बाद भी मुझे समझ न सको,
या समझ चुके हो तुम,
फ़िर भी नासमझी का तमाशा करते हो।
तुम्हें पता है कि ये मगरूरी नामंजूर है मुझको,
लिए फ़िरते हो तुम आँखों में गुरुर-ए-समुन्दर को, किस बात का गुमां है,
किस बात का सुरूर,
किस बात पे यूं नाज़
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