
इन थरथराते हाथों की थरथराते अंगुलियों से,
थरथराते शब्दों में तुझे लिखना कितना मुश्किल है...
उतना ही जितना तेरी इन आँखों के दरिया से मेरा निकल पाना,
तेरी रेशमी जुल्फों की उलझनों के भंवर में फंस के रह जाना,
तेरे होठों की वो प्यारी मुस्कान जो मेरा ध्यान तेरी ओर खींच ले जाती थी,
उसे बापस ला पाना,
तुझे लिखना कितना मुश्किल है...
उतना कि तेरे साथ देर रात तक की गई बातें जब भी याद आती हैं,
तो आँसुओं को रोक पाना,
कि वो अल्फ़ाज़ वो जज़्बात जो हमने देर शाम तक पार्क में बैठ के बांटे थे,
वो कई अकेली सर्द रात जो तेरी याद में काटी थी,
और एक कप चाय में तेरा मेरा साथ,
तुझे लिखना कितना मुश्किल है...
लेकिन अब कलम उठा ली है तो लिखूंगा जरूर,
क्युकी उन यादों के दरिया से निकल आने से ज्यादा मुश्किल नहीं है ना
-अभिषेक भारती
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