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ये कैसा जीवन
जुबां पे सिर्फ आह है
क्या करें पता नहीं
क्युं नहीं मिलती कोई राह है
बंज़र भूमि - बंज़र जीवन
ज़िन्दगी भी तबाह है
ये कैसा जीवन
जुबां पे सिर्फ आह है
क्या करें पता नहीं
क्युं नहीं मिलती कोई राह है
कैसे हो
बच्चों की शिक्षा पुरी
कैसे पूरी हो
परिवार की अभिलाषा अधुरी
खुद मुक्त भी नहीं होती यह जीवन
मुक्त हो जाए तो होती खुद की चाह है
ये कैसा जीवन
जुबां पे सिर्फ आह है
कोई नेता
झूठे वादों के अंबार लगाए
कोई कहीं
भ्रष्टाचार कर करोड़ों कमाए
अश्क भी कोई समझ ले
क्युं नहीं किसी को हमारी परवाह है
ये कैसा जीवन
जुबां पे सिर्फ आह है
क्या करें पता नहीं
क्युं नहीं मिलती कोई राह है
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