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एक चंचल चहरा,मेरे लाल का
प्यारे संक्षिप्त भाव भला,
मेरी ओर हर शाम चले
लेकर अपना सवाल बड़े।
मदमस्त होकर वो भीतर आये
अधूरे सवाल पर प्रश्नवाचक लगाये
औऱ बोले
"पापा आफिस ख़त्म?"
मै भी अब मुस्करा लिया,
कुछ क्षण की लेकर देर,
अपनी मजदूरी से मुँह फेर,
इस भाव पर बह गया।
नन्हे बच्चे का प्रेम प्रसंग,
अपने शब्दो मे कह गया।।
रोज शाम यू आती रहे,
ये मासूम सवाल सुनाती रहे।
फिर क्यों मोक्ष की लालसा हो,
स्वर्ग भोग रहे क्या जिज्ञासा हो।।
अभिमन्यु सिंह
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