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सोचना जब भी कुछ चाहा,
पहले तस्वीर तुम्हारी नज़र आती,
ख्वाबों को कितना भी बांध लूँ में
पर ख्वाबों में आज भी तुम ही नज़र आती।।
न कोशिश तुम्हें पाने की है,
न ही मन मष्तिक तुम्हें भूलना चाहते,
अब एक लालसा है जीवन की,
जब भी विदा ले यहाँ से बस तुम्हें देखना चाहते।।
जब तक तुम्हारे साथ था में,
तब में खुद अपनी पहचान था,
तुमने ऐसे मोड़ पर छोड़ा है,
जहाँ अब तुम ही मेरी पहचान हो।।
ऐसा लगता है अब सारी आशाएं अभिलाषाएं ,
कारागृह में बंद सी हो गई हैं,
और तुम्हारी सारी मेरे यादें मेरे जीवन में
अब छंद सी हो गई हैं।।
~अभय दीक्षित
#प्रेम
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