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शाख पर जो परिंदे अब तक उदास बैठें हैं,
क्या किसी के लौटने के विश्वास में बैठें हैं।।
मत पूछो किसी से कितने अपने रूठें है,
पूछो उनसे जो उनको मनाने में कितने टूटे हैं।।
जो काटों पे भी चलक
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