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रात भर में तुमको रोया
तब जा के लिख पाया हूँ,
इसको गीत तुम जरा न समझना
में आंसू भर के लाया हूँ।।
अगर भीगे अंतर मन तुम्हारा
दिल बड़ा ही उदास हो जाए
तो मैं समझूँगा की नादानी में भी
बात समझदारी की कर आया हूँ
रात भर में तुमको रोया,
तब जा के लिख पाया हूँ।।
प्रेम सुना था पावन नदियों के किनारे
पर तुम मुझे बो प्रेमी न समझना
में तो अपने अँसुयों से ही
एक नदी बना के लाया हूँ
रात भर में तुमको रोया,
तब जा के लिख पाया हूँ।।
जो देखते हो तुम इतने पाषाण
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