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जब उतरा है मन तेरे संग -संग जीने के लिए,
क्या ही है फर्क अब अमृत या विष में पीने के लिए,
अब जो भी मिलेगा अब सहज ही पी लेंगे भेद कैसा,
जब वादा कर ही लिया तेरे संग जीने मरने के लिए।।
मन को बहुत ही समझाया,
मंदिर मधुशाला का भेद बताया,
पर उसको बो ही सही लगा है,
जो तुझमे है देख पाया,
जब उतरा है मन तेरे संग -संग जीने के लिए,
क्या ही है फर्क अब अमृत या विष में पीने के लिए।।
जब हम अकेले पड़े थे जमाने में,
तो हमें कौन संग देने आया था,
जब तुम्हें है साथ की जरुरत हमारे,
तो क्यों छोड़ें साथ सिर्फ बे-दाग होने के लिए,
जब उतरा है मन तेरे संग -संग जीने के लिए,
क्या ही
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