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कुछ दर्द कुछ एहसास आँखों में ऐसे घर कर जाते हैं,
जब भी खोलो इन आँखों को बो मोती से बिखर जाते हैं,
अरे दोष नहीं इन आँखों का इनने ये सब क्यों देखा है,
पूछो उस दिल से भी जो गवाह बन अब तक चुप बैठा है
आँख ने जो भी देखा बो सब जमाने को बतला देती है
दिल कैसे बोले कुछ जब आंख ही उसे समझा लेती है
पहली बार मिले थे तुम से मन ने बहुत समझाया था
अब मन ही क्या करता जब दिल ही तुम पे आया था
अब बैठे हैं अलग-अलग हम एक-एक भाग शरीर के
क्यों कोष रहें एक-दूजे को जब सब कुछ भरोसे तक़दीर के।।
~अभय दीक्षित
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