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दिल की इबादत लिख भी दूँ
मौत पर लिखूँ इतने काबिल नहीं हूँ
तुम्हारी राह के काँटे तो चुन लूँ
तुम्हारे संग-संग चल सकूँ इतने काबिल नहीं हूँ
तुम्हें तो में अपना मान भी लूँ
तुम्हें बता सकूँ इतने काबिल नहीं हूँ
जमाने पर तो सब कुछ लिख भी दूँ
तुम्हें एक नया शब्द भी दूँ इतने काबिल नहीं हूँ
तुम्हें अपना सर्वस्य लुटा भी दूँ
तुम नज़र भर देख भी लो इतने काबिल नहीं हूँ
एक क्षण तुम्हारे लिए मौत को भी लौटा दूँ
तुम्हें सपने में भी बुला सकूँ इतने काबिल नहीं हूँ।।
~अभय दिक्षित
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