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हवा में जहर घुल चुका है, बो शायद किसी और से मिल चुका है
हिचकियाँ रुक गई हैं अब मेरी, शायद बो बदल चुका है।।
जमाने को कैसे समझाऊँ ,अब खाली हंगामा बचा है,
जिसके चर्चे मेरी बगियाँ में थे, बो गुलाब कहीं और खिल चुका है।।
शायद मैं ही सोच रहा हूँ, दिल में दबोच रहा हूँ,
जिसको जाना था, बो कबका यहाँ से निकल चुका है।।
मेरी रूह का उन्माद, अब थम सा गया है,
जो दिल सागर था पहले, अब किनारा हो चुका है ।।
~अभय दीक्षित
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