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हम जा बैठे दूसरी नगरी में

Abhay DixitAbhay Dixit January 5, 2022
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हम जा बैठे दूसरी नगरी में,
या कहे ख्वाबों की पटरी में,
इतने यहाँ हमने भी जान लिया,
जैसे सागर भर जाता है गगरी में।।

बो दूसरी ही दुनिया थी हमारी,
जहाँ शून्य से शिखर की बातें थी,
ये दूसरी ही दुनिया में आ गए,
जहाँ बंद आँखों के सपनों की बाते हैं।।

जब हम कुछ और चले तो,
हमने यहाँ का राज जाना,
बूढ़े में हमने जवानी देखी,
जवानों में बुढ़ापे को पहचाना।।

यहाँ के हॉट बाजारों को देखा,
तो मन में बड़ा ही वेदना आई,
ईमानदार सत्यनिष्ठा को कुचलकर लोगो ने,
द्वेष इर्ष्या पाखंड वै

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