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एक विचलित संघर्ष बाहर मन में
एक विचलित संघर्ष अंतर्मन में
इन दो प्रश्नों के बीच
मैं फस गया अकेला जीवन में
दोनों ओर विजय रण है
यह जीवन खेल का अद्भुत क्षण है
एक और राजा मन है
एक और तपस्वी मन है
कैसे बात बनेगी अब
हारने -जीतने वाले दोनों मन है
दोनों में से एक ही जीते
तो भी हार मेरी होगी
दोनों को में साथ जिता दूँ
ये बात असंभव होगी
कुछ दिन और संघर्ष करेंगे
तब ही अमानिशा हटेगी
दोनों राहों के बीच
कभी तो सुलह बनेगी।।
~अभय दीक्षित
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